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लोधा लोधी लोध समाज – संक्षिप्त इतिहास

लोधा लोधी लोध समाज, प्राचीन एवं प्रतिष्ठित समाज में से एक है। यह समुदाय लोधा लोधी और लोध नाम से भी जाना जाता है। मुख्यत: लोधा लोधी लोध उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़गानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है। लोधा लोधी लोध के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत लोधा लोधी लोध जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का Lodheswar, पाकिस्तानी पंजाब का लोध ज़िला और लोधा ज़िला, और लोध ज़िले का लोध ख़ान शहर।

लोधा लोधी लोध अभिलेखो के हिसाब से ये सूर्यवंशी या रघुवंशी है। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने लोधा लोधी लोध को रघुकुल-तिलक तथा रघुग्रामिणी कहा है। 7वीं से 10वीं शताब्दी के लोधा लोधी लोध शिलालेखो पर सूर्यदेव की कलाकृतियाँ भी इनके सूर्यवन्शी होने की पुष्टि करती है। राजस्थान में आज भी लोधा लोधी लोध को सम्मान से 'मिहिर' बोलते है, जिसका अर्थ 'सूर्य' होता है। कुछ इतिहासकारो के अनुसार लोधा लोधी लोध मध्य एशिया के कॉकस क्षेत्र (अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए आर्य योद्धा थे। कुछ जानकार इन्हे विदेशी भी बताते है क्योंकि लोधा लोधी लोध का नाम एक अभिलेख मे हूणों के साथ मिलता है, परन्तु इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नही है। संस्कृत के विद्वानों के अनुसार, लोधा लोधी लोध शुद्ध संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ 'शत्रु का नाश करने वाला' अर्थात 'शत्रु विनाशक' होता है। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने लोधा लोधी लोध नरेश महिपाल को अपने महाकाव्य मे दहाडता लोधा लोधी लोध कह कर सम्बोधित किया है। कुछ इतिहासकार कुषाणों को लोधा लोधी लोध बताते है तथा कनिष्क के रबातक शिलालेख पर अन्कित 'गुसुर' को लोधा लोधी लोध का ही एक रूप बताते है। उनका मानना है कि गुशुर या लोधा लोधी लोध तो विजेता के रूप मे भारत मे आये क्योंकि गुशुर का अर्थ 'उच्च कुलिन' होता है। लोधा लोधी लोध साम्राज्य इतिहास के अनुसार ५वी शदी मे भीनमाल लोधा लोधी लोध सम्राज्य की राजधानी थी तथा इसकी स्थापना लोधा लोधी लोध ने की थी। भरुच का सम्राज्य भी लोधा लोधी लोध के अधीन था। चीनी यात्री ह्वेन्सान्ग अपने लेखो मे लोधा लोधी लोध सम्राज्य का उल्लेख करता है तथा इसे 'kiu-che-lo' बोलता है। छठी से 12 वीं सदी में लोधा लोधी लोध कई जगह सत्ता में थे। लोधा लोधी लोध-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी। मिहिरभोज को लोधा लोधी लोध- प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बंगाल के पाल वंश और दक्षिण-भारत के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी। 12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए। अरब आक्रान्तो ने लोधा लोधी लोध की शक्ति तथा प्रसाशन की अपने अभिलेखो मे भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इतिहासकार बताते है कि मुगल काल से पहले तक लगभग पूरा राजस्थान अरब लेखकों के अनुसार लोधा लोधी लोध उनके सबसे भयंकर शत्रु थे तथा उन्होंने ये भी कहा है कि अगर लोधा लोधी लोध नहीं होते तो वो भारत पर 12वीं सदी से पहले ही अधिकार कर लेते। 18वीं सदी में भी गुर्जरो के कुछ छोटे छोटे राज्य थे। दादरी के लोधा लोधी लोध राजा, दरगाही सिन्ह के अधीन 133 ग्राम थे। मेरठ का राजा लोधा लोधी लोध सिंह था तथा उसने परीक्षितगढ़ का पुननिर्माण करवाया था। भारत गजीटेयर के अनुसार 1857 की क्रान्ति मे, लोधा लोधी लोध तथा मुसलमान् राजपूत, ब्रिटिश के बहुत बुरे दुश्मन साबित हुए। लोधा लोधी लोध का 1857 की क्रान्ति मे भी अहम योगदान रहा है। कोतवाल धन सिंह लोधी 1857 की क्रान्ति का शहीद था।

प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे लोधा लोधी लोध मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। लोधा लोधी लोध अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। लोधा लोधी लोध महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे लोधा लोधी लोध हिन्दु हैं। सामान्यत: लोधा लोधी लोध हिन्दु, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो मे देखे जा सकते हैं। मुस्लिम तथा सिख लोधा लोधी लोध, हिन्दु लोधा लोधी लोध से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है।


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